दिल्ली विधानसभा सत्र का तीसरा दिन, दिल्ली की राजनीति में एक नई हलचल

द मीडिया टाइम्स डेस्क 

आज के सत्र में दिल्ली विधानसभा परिसर में आम आदमी पार्टी (AAP) के विधायकों को प्रवेश से रोक दिया गया, जो कि एक ऐतिहासिक घटना थी। इससे पहले सत्र के दूसरे दिन, यानी 26 फरवरी को, आप पार्टी के 21 विधायकों को पूरी सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया था। अब, उन विधायकों को विधानसभा परिसर में भी प्रवेश नहीं करने दिया गया। इस कदम से विपक्षी पार्टी आम आदमी पार्टी की नेता और नेता प्रतिपक्ष, आतिशी, ने तीखा विरोध किया और भाजपा पर तानाशाही का आरोप लगाया।

आतिशी ने इस घटनाक्रम पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (Twitter) पर एक पोस्ट किया। उन्होंने लिखा, “भाजपा वालों ने सरकार में आते ही तानाशाही की हदें पार कर दी हैं। तीन दिन पहले ‘जय भीम’ का नारा लगाने के कारण आम आदमी पार्टी के विधायकों को सदन से निलंबित किया और अब आज उन्हें विधानसभा परिसर में भी घुसने नहीं दिया जा रहा।” आतिशी ने आरोप लगाया कि यह कदम दिल्ली विधानसभा के इतिहास में कभी नहीं देखा गया था, जब चुने हुए विधायकों को विधानसभा परिसर में प्रवेश से रोक दिया गया हो।

इस पूरे मामले में भाजपा सरकार का पक्ष सामने आया है कि आप पार्टी के विधायकों की यह हरकतें सदन की कार्यवाही में बाधा डालने वाली थीं, इसलिए उन्हें निलंबित किया गया और अब उन्हें परिसर में भी नहीं आने दिया जा रहा। भाजपा का कहना है कि विधानसभा की गरिमा बनाए रखना जरूरी है, और अगर किसी पार्टी के विधायक नियमों का उल्लंघन करेंगे, तो उन्हें सजा दी जाएगी।

हालाँकि, आप पार्टी इस कदम को भाजपा की तानाशाही मानसिकता का उदाहरण मान रही है। आतिशी ने यह भी कहा कि भाजपा द्वारा यह कार्रवाई संविधान और लोकतंत्र की पूरी अवहेलना है। उनका कहना है कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि किसी पार्टी के चुने हुए प्रतिनिधियों को विधानसभा परिसर में प्रवेश से रोका गया हो।

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना दिल्ली में चल रहे सत्तारूढ़ दल और विपक्ष के बीच तीव्र संघर्ष को और बढ़ाएगी। दोनों ही दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी रहेगा। वहीं, आम आदमी पार्टी के समर्थकों का कहना है कि यह कदम लोकतंत्र की हत्या है और पार्टी का यह कदम दिल्ली की जनता के विश्वास का उल्लंघन है।

इस पूरे घटनाक्रम ने दिल्ली विधानसभा के सत्र को एक नया मोड़ दे दिया है। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा का विषय बन चुका है कि क्या यह तानाशाही का प्रतीक है, या फिर यह केवल सदन की कार्यवाही को व्यवस्थित रखने का कदम है। फिलहाल, यह देखना होगा कि यह विवाद दिल्ली के राजनीतिक माहौल में किस दिशा में बढ़ता है और इसके परिणाम क्या होंगे।

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