जॉन देवी • अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव

द मीडिया टाइम्स – मोहित श्रीवास्तव 

डेस्क:  दुनिया का सबसे पुराना लोकतांत्रिक देश “संयुक्त राज्य अमेरिका”, इस वर्ष, “राष्ट्रपति चुनाव” में जाने वाला है। जबकी, संसार के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश “भारत” में “आम चुनाव” का उत्सव, इस वर्ष मन चुका है। अमेरिका में “चार वर्षीय” चुनाव का प्रवधान है और भारत में “पंच वर्षीय”। कई वर्षों में जाकर यह संयोग आता है की, सबसे बड़े लोकतंत्र और सबसे पुराने लोकतंत्र में, एक हीं वर्ष में आम चुनाव होता है। यह वर्ष, २०२४, इसी संयोग का उदाहरण है।

अब बात करते हैं, अमेरिका में आने वाले राष्ट्रपति चुनाव का। दो प्रमुख प्रत्याशी हैं, इस बार के चुनावी अखाड़े में। डेमोक्रेटिक पार्टी से “कमला देवी हैरिस” और रिपब्लिकन पार्टी से “डोनाल्ड जॉन ट्रम्प”। डोनाल्ड ट्रम्प, २०१६-२० तक अमेरिकी राष्ट्रपति रह चुके हैं और २०२०-२४ अर्थात वर्तमान के अमेरिकी राष्ट्रपति हैं, “जो बाइडेन”। बाइडेन के, अब चुनाव लड़ने से मना करने के बाद उन्हीं के दल की कमला, जो अभी अमेरिका की “उपराष्ट्रपति” हैं, राष्ट्रपति चुनाव अखाड़े में हैं।

क्या हैरिस, अमेरिका के लिए सही होंगी या ट्रम्प? तो इसका उत्तर तो समय हीं बताएगा। लेकिन जब एक राष्ट्र का आम चुनाव हो या को प्रांतीय या और चुनाव, प्रत्याशी वहीं का होना चाहिए और यही एक आदर्श अवस्था होता है। बात अभी एक राष्ट्र के चुनाव का हो रहा है तो क्या, कमला, जो भारतीय मूल की अमेरिका में जन्मीं महिला हैं, वो अमेरिका के लिए अपना शत-प्रतिशत कर्तव्य पालन कर सकती हैं? इसका उत्तर लगभग “नहीं” में है। एक भारतीय होने के कारण, जब हम अपने देश के चुनाव में, भारतीय मूल और विदेशी मूल में अंतर रखते हैं (रखना भी चाहिए), तो यह बात तो सभी देशों पर भी लागू होना चाहिए नहीं तो ऐसी दोहरी विचारधारा को दोगलापन कहा जाएगा। डोनाल्ड ट्रम्प, अमेरिकी हैं। यही बात, भारतीय मूल के, इंग्लैंड के पूर्व प्रधानमंत्री “ऋषि सुनक” पर भी लागू होता है और ऐसे सभी राष्ट्राध्यक्ष पर लागू होता है जो विदेशी मूल के हैं। इंग्लैंड , वहां के लोगों के द्वारा नियंत्रित होना चाहिए और सभी देश, अपने लोगों द्वारा चलाया जाना चाहिए। “राहुल गांधी और सोनिया गांधी” जैसा व्यक्तित्व भी, भारत के लिए सही नहीं है।

एक ओर तो हमारे समाज के बहुत लोग, विदेशी मूल का विरोध करते हैं लेकिन जब अपने देश से जुड़ा हुआ कोई व्यक्ति, दुसरे देश का प्रमुख बनता है तो प्रसन्न होते हैं। यह गलत मानसिकता है। एक व्यक्ति, जितना अच्छा अपने लिए सोचता है अगर उतना हीं अच्छा औरौं के लिए सोचे तो संसार अच्छा हो जाएगा।

एक बात और। बात, और कड़वी है। बात है, “पुरुष और महिला” का। लड़का और लड़की का। लड़का एक “परिवार/कुल” को चलाता है जबकि लड़की, शादी के बाद, दो कुल/परिवार की हो जाती है। यह महिलाओं की विशेषता है जो इन्हें, इस विषय में, पुरूषों से उच्च बनाता है। लेकिन यही पर समस्या भी आता है। दो परिवार/कुल में बंटे होने के कारण, अधिकांश महिला, ऐच्छिक या अनैच्छिक रुप से, किसी एक कुल के लिए संपूर्ण नहीं हो पाती हैं। एक हीं कुल के रहने के कारण, पुरुषों में यह असमंजस नहीं दिखता। ये अलग बात है की, बहुत लड़के भी अपने घर को, ऐच्छिक या अनैच्छिक रुप से, बर्बाद कर देते हैं। मैं, यह सब बातें यहां पर इसलिए बता रहा हूं क्योंकि, यह बात विदेशी मूल (महिला) और स्वदेशी मूल (पुरुष) पर लागू होता है।

अमेरिका को शुभकामनाएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *