भारत के मौसम विभाग की शब्दावली में, 3 से 10 जुलाई तक, आठ में से पांच दिन, दिल्ली में ‘अधिक’और ‘अत्यधिक’ बारिश हुई। बीते 9 जुलाई को यहां 221.4 मिमी बारिश दर्ज की गयी, जो पूरे जुलाई महीने की औसत बारिश 209.7 मिमी से ज्यादा है। यह सही है कि बाढ़ आने में इसकी भूमिका रही, पर बीते कुछ दिनों में बारिश में तेजी से कमी आयी है। और अब भी, शहर के कई बड़े हिस्से, जिसमें लाल किला और सुप्रीम कोर्ट जैसे सबसे मशहूर स्थल भी शामिल हैं, जलमग्न हैं। यह देखते हुए कि दिल्ली में बने बैराज नदी के प्रवाह को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने और मोड़ने में अक्षम हैं, दिल्ली के अधिकारियों ने इसके लिए ऊपरी बहाव वाले राज्यों में, खासकर हरियाणा के यमुनानगर में, यमुना के उफनाने को जिम्मेदार ठहराया है। यह दिल्ली के उस बुनियादी ढांचागत विकास की भूमिका की ओर से आंखें मूंद लेना है जिसने बरसों से यमुना के खादर में प्रतिबंधित निर्माण कार्यों की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया है, जो मानसून से पहले नालों से गाद हटाने को प्राथमिकता देने में विफल रहा, और जिसने शहर के बड़े पैमाने पर कंक्रीटीकरण से बचाव के कदमों में कटौती कर दी। हालांकि, मामला यह है कि दिल्ली के ऊपरी बहाव क्षेत्र में भी, नदी की पेटी में खनन का मतलब है, हरियाणा से आयी भारी मात्रा में गाद से प्राकृतिक बहाव का अवरुद्ध होना। ऐसे में आरोप-प्रत्यारोप और ‘रिकॉर्ड बरसात’ की ओर उंगली उठाने से कोई फायदा नहीं।
आर्कटिक के साथ-साथ अरब सागर में तापमान वृद्धि (वॉर्मिंग) के रुझान देखते हुए, अत्यधिक बारिश के दौर की संभावना बढ़ जाने का मतलब है कि भविष्य में ऐसी कई बाढ़ और आयेंगी। बेंगलुरू, चेन्नई और मुंबई में शहरी बाढ़ तुलनात्मक रूप से ज्यादा बार-बार आती है, लेकिन दिल्ली को भी अब खुद को महफूज नहीं समझना चाहिए, क्योंकि उसकी आबादी और बुनियादी ढांचागत जरूरतों की मांग सिर्फ और सिर्फ बढ़ने जा रही है। यह एहसास होने पर कि साफ हवा सभी शहरों द्वारा की जाने वाली कार्रवाइयों पर निर्भर है, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र ने वायु प्रदूषण से निपटने के लिए एक साझा प्रबंधन रणनीति विकसित की। ठीक इसी तर्ज पर, इन राज्यों को अपने मतभेदों को दरकिनार करना होगा और भविष्य की बाढ़ों से मुकाबले के लिए एक साझा रणनीति विकसित करनी होगी।
भारत अभी बीच मानसून से गुजर रहा है और पहाड़ी राज्यों की भौगोलिक संरचना को देखते हुए, इस बात के पूरे आसार हैं कि आगे होने वाली बारिश से मिट्टी सरकेगी, भू-स्खलन होगा और यह जान-माल के लिए भारी खतरा पेश करेगा। हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली उन राज्यों में शामिल हैं जहां रिकॉर्ड बारिश दर्ज की गयी है और कम-से-कम 60 मौतों की पुष्टि हुई है, हालांकि वास्तविक तादाद इससे ज्यादा हो सकती है। यह दिल्ली (एक ऐसा शहर जो अमूमन बारिश के लिए नहीं जाना जाता) की ही बाढ़ है, जिसने दबी पड़ी इस आपदा पर पूरे देश का ध्यान केंद्रित किया है।