अ-शिक्षा

द मीडिया टाइम्स डेस्क -मोहित श्रीवास्तव

अधिकांश विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय और अन्य शिक्षण संस्थान, अंकपत्र बेचने में लगे हुए हैं। ये लोग तो स्थापित हीं, शिक्षा को अनैतिक रूप से बेचने के लिए होते हैं। और अगर शिक्षकों/अध्यापकों/प्राध्यापकों की बात करें तो, यहां भी विषय गंभीर है। अधिकांश शिक्षकों के पास, वास्तविक रूप से, शिक्षण योग्यता हीं नहीं है।

भारत के साथ-साथ, पुरे संसार की बात की जाए तो, एक समान हीं, शिक्षा की दयनीय स्थिति है। कहीं कम तो कहीं अधिक।

नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला इत्यादि वाला देश जिसने आर्यभट्ट, रमण, कलाम इत्यादि जैसा शैक्षणिक धरोहर दिया – वह भारत, आज अपने खोए हुए धरोहर को पाने तक का सही प्रयास नहीं कर रहा है। विश्वगुरु, आज फिर से विश्वगुरु बनना तो चाहता है पर सोच में सच्चाई नहीं दिखता।

सरकारी शिक्षण संस्थानों के अधिकांश शिक्षक, पढ़ाना नहीं चाहते तो निजी शिक्षण संस्थानों में, शिक्षा का अनैतिक बिक्री चल रहा है। यहां पर मैं यह भी लिखना चाहुंगा की, यह सब बातें, सरकार और समाज से छिपा नहीं है लेकिन अधिकांश लोग इसके लिए आवाज नहीं उठाते क्यूंकि अधिकांश समाज तो इसी अनैतिक कार्य का हिस्सा है।

कुछ निजी शिक्षण संस्थानों को, अनैतिक गतिविधियों के कारण प्रतिबंधित तो कर दिया जाता है लेकिन अधिकांश सरकारी शिक्षण संस्थान, जहां विद्यार्थी सिर्फ, परीक्षा के समय आते हैं और शिक्षक पढ़ाना नहीं चाहता, वहां पर कोई कार्रवाई नहीं किया जाता है। यह दुखद है, निंदनीय है। वास्तविकता में, अधिकांश सरकारी शिक्षण संस्थानों को प्रतिबंधित करना चाहिए।

“प्ले स्कूल”, बच्चों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहा है क्योंकि जिस आयु में बच्चों को अपने परिवार के साथ रहना चाहिए उस आयु में वे अकारण पढ़ाई करने जा रहे हैं। वहीं, “कैंपस प्लेसमेंट” वाला पद्धति, उच्च शिक्षा के लिए, शिक्षा के लिए अवरोधक बना हुआ है। और, “कोचिंग संस्थान”, विद्यार्थियों को उनके वास्तविक शिक्षण संस्थान में जाने से, प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष, रोकते हैं। “प्ले स्कूल, कैंपस प्लेसमेंट और कोचिंग संस्थान” को प्रतिबंधित कर देना चाहिए।

अंत में मैं यही लिखूंगा की,
“सरस्वती और लक्ष्मी, दोनों का सम्मान करें”
सरस्वती, बिना लक्ष्मी के आती हैं और लक्ष्मी देती हैं। लेकिन लक्ष्मी, बिना सरस्वती के नहीं आतीं”

शिक्षित बनें • शिक्षित रहें • शिक्षित करें

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