पवित्र इश्क़

द मीडिया टाइम्स 

मोहित श्रीवास्तव 

डेस्क:  यह क्या मजाक है। क्यूं मजाक बनाया जाता है, “प्यार के दिन”(वैलेंटाइन दिवस) का। कुछ लोग, इस दिन को, स्वतंत्रता सेनानी से जोड़कर, बोलते हैं की, इस दिन “स्वतंत्रता सेनानी” को याद करने का दिन है – तो कुछ लोग बोलते हैं की, इस दिन को “माता-पिता” के प्रति प्यार दिखाने का दिन बनाना चाहिये, ईत्यादी।

इश्क़ नहीं तो कुछ नहीं। माता-पिता नहीं। बच्चे नहीं। स्वतंत्रता सेनानी नहीं। राजनेता नहीं। कुछ नहीं। यहां तक की, बहुत लोग तो “वैलेंटाइन के आठ दिन” का मजाक उड़ाते हैं – और, बहुत जगह तो, वैलेंटाइन दिवस का “बहिष्कार” करते हैं‌। बहुत सारे, गैर-ईसाई (खासकर, “हिन्दू और मुस्लिम”), तो इसे, खुद के “धर्म के खिलाफ” मानते हैं, ईत्यादी।

मेरा, इन सब लोगों से यही कहना है की, कृप्या कर के, मत करो, प्यार के दिन और प्यार का विरोध। “माता-पिता” के लिये आभार, का अपना अलग दिन है – और, देशभक्ति के लिये भी, बहुत सारे दिन हैं। ईत्यादी‌। और, धर्म के नाम पर, किसी त्योहार का विरोध करना तो, बिलकुल गलत है।

देशभक्ती, माता-पिता ईत्यादी के लिये खास दिन होता है ? आप हर दिन यह काम कर सकते हो  लेकिन, इसका अर्थ यह बिलकुल नहीं हुआ की, आप अपने “सुहागरात”, में पुरे रात, अपने “माता-पिता” के चरणों में बैठ कर आशिर्वाद लेते रहेंगे, या “जय हिन्द, जय हिन्द” करते रहेंगे।

इश्क़, किशोरावस्था है। इश्क़, जवानी है। इश्क़, वृद्धावस्था है। इश्क़, बंधन है। इश्क़, समर्पण है। इश्क़, इश्क़ है। इश्क़, पवित्र है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *