द मिडिया टाइम्स डेस्क
नीतीश कुमार ने हाल ही में भाजपा नेताओं को स्पष्ट संदेश दिया है कि बिहार में हिंदू-मुस्लिम के मुद्दे पर कोई ड्रामा नहीं चलेगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि राज्य की राजनीति को साम्प्रदायिकता से ऊपर उठाना होगा और विकास एवं समृद्धि पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। नीतीश कुमार की यह स्थिति उनकी समावेशी राजनीति के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है। यह बयान ऐसे समय में आया है जब बिहार में राजनीतिक तनाव और सांप्रदायिकता के आरोप लग रहे हैं।
बतादे की नीतीश कुमार ने भाजपा नेताओं को साफ संदेश- दिया है उन्होंने कहा कि बिहार में नहीं चलेगा हिन्दू-मुस्लिम का ड्रामा, नेता खुद को बदलें, वरना हार का सामना करना पड़ सकता है वही नीतीश कुमार ने एनडीए में शामिल पांच पार्टियों के प्रमुखों, संसद के दोनों सदनों के सदस्यों, विधानसभा और विधान परिषद के सदस्यों के अलावा पार्टी पदाधिकारियों और जिलाध्यक्षों को भी बैठक में न्यौता दिया गया था, बैठक स्थल सीएम आवास पर था लोजपा-आर के अध्यक्ष चिराग पासवान बैठक में नहीं आए, लेकिन अपने सांसद अरुण भारती को भेजा. हम प्रमुख जीतन राम मांझी भी नहीं आए, लेकिन उनके बेटे ने शिरकत की. राष्ट्रीय लोक मोर्चा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के अलावा भाजपा और जेडीयू के नेताओं का जमावड़ा लगा. नीतीश ने बैठक में सहयोगी दलों को साफ और कड़ा संदेश दिया.
सहयोगी दलों और प्रतिपक्ष को संदेश
बैठक का संदेश साफ था. नीतीश कुमार यह बताना चाहते थे कि बिहार में भले वे 43 विधायकों वाली पार्टी के नेता हैं, लेकिन रुतबा बड़े भाई का बरकरार है. वे विरोधियों को संदेश देना चाहते थे कि उन्हें बूढ़ा और बीमार बता कर खारिज करने की भूल न करें. गिरिराज सिंह, हरिभूषण बचौल और प्रदीप सिंह जैसे भाजपा नेताओं को भी नीतीश कड़ा संदेश देना चाहते थे. उन्हें उनकी औकात बताना चाहते थे. इसमें नीतीश सफल रहे. उनके बड़बोलेपन से नीतीश नाराज थे. गिरिराज सिंह की हिन्दू स्वाभिमान यात्रा, बचौल की सीमांचल को अलग राज्य बनाने की मांग और प्रदीप सिंह की मुसलमानों को अररिया में हिन्दू बन कर रहने की हिदायत से नीतीश कई दिनों से आहत थे मुस्लिम वोटरों की नाराजगी का भय
नीतीश कुमार को पता है कि उन्हें मुस्लिम वोटरों को आरजेडी के चंगुल से मुक्त कराने में कितनी मेहनत करनी पड़ी है. मुसलमानों में पसमांदा को खास तवज्जो नीतीश ने दिया, जिससे पिछड़े मुसलमानों में उनकी पैठ मजबूत हुई. अपनी सेकुलर इमेज से उन्होंने मुसलमानों को अपने पाले में लाने में बड़ी मुश्किल से कामयाबी हासिल की. नीतीश कुमार के भाजपा के साथ रहने के बावजूद मुसलमानों ने अब तक उनका साथ नहीं छोड़ा है तो इसकी वजह उनकी सेकुलर छवि ही है. नीतीश जिन तीन ‘C’ (क्राइम, कम्युनलिज्म और करप्शन) की बात करते हैं, उनमें कम्युनलिज्म दूसरे ही नंबर पर रहता है.
मोदी के नाम पर बिदक गए थे नीतीश
कम्युनलिज्म से नीतीश को कितनी चिढ़ है, वह इससे समझा जा सकता है. नरेंद्र मोदी के गुजरात का सीएम रहते जब वहां दंगा हुआ तो इसके छींटे उन पर भी पड़े. हालांकि बाद में मोदी को क्लीन चिट कानून मिल गई और जनता ने भी बेदाग बता दिया. बहरहाल, इससे नीतीश के मन में उनके प्रति नफरत पैदा हो गई. दोनों के बीच की तल्खी पहली बार वर्ष 2010 में तब देखी गई, जब नीतीश ने पटना में नरेंद्र मोदी के लिए भोज का आयोजन किया था. उस दिन के अख़बारों में छपे एक विज्ञापन में मोदी के साथ अपनी तस्वीर देख नीतीश इतने नाराज़ हुए थे