महिला आरक्षण बिल क्या है और अब तक क्या-क्या हुआ?

मोदी कैबिनेट ने महिला आरक्षण बिल को मंज़ूरी दे दी है. यह बिल पिछले 27 साल से लटका हुआ है. कैबिनेट का फ़ैसला सार्वजनिक तो नहीं हुआ है लेकिन केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी, हालांकि बाद में उन्होंने अपना ट्वीट डिलीट कर दिया. इसके बाद इस बात की चर्चा तेज़ हो गई कि सरकार विशेष सत्र में महिला आरक्षण बिल पेश कर सकती है.

महिला आरक्षण बिल सोमवार को लोकसभा में भी चर्चा में रहा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुराने संसद भवन में अपने अंतिम भाषण में कहा कि दोनों सदनों में अब तक 7500 से अधिक जन प्रतिनिधियों ने काम किया है, जबकि महिला प्रतिनिधियों की संख्या करीब 600 रही है. उन्होंने कहा कि महिलाओं के योगदान ने सदन की गरिमा बढ़ाने में मदद की है.

इसके बाद नेता प्रतिपक्ष अधीर रंजन चौधरी ने पिछले 75 सालों में कांग्रेस सरकारों के कामकाज़ का लेखा-जोखा पेश किया. इस दौरान सोनिया गांधी ने उन्हें महिला आरक्षण बिल की याद दिलाई थी.

क्या है महिला आरक्षण बिल

महिला आरक्षण बिल 1996 से ही अधर में लटका हुआ है. उस समय एचडी देवगौड़ा सरकार ने 12 सितंबर 1996 को इस बिल को संसद में पेश किया था. लेकिन पारित नहीं हो सका था. यह बिल 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में पेश हुआ था.

बिल में संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण का प्रस्ताव था. इस 33 फीसदी आरक्षण के भीतर ही अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए उप-आरक्षण का प्रावधान था. लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं था.

इस बिल में प्रस्ताव है कि लोकसभा के हर चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए. आरक्षित सीटें राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन के ज़रिए आवंटित की जा सकती हैं.

इस संशोधन अधिनियम के लागू होने के 15 साल बाद महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण ख़त्म हो जाएगा.

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