धार्मिक स्वतंत्रता का मतलब धर्मांतरण का अधिकार नहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट की बड़ी टिप्पणी

द मीडिया टाइम्स डेस्क

जबरन इस्लाम कबूल कराने और यौन शोषण करने के आरोपी अजीम को इलाहाबाद हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है. हाईकोर्ट ने आरोपी की जमानत याचिका को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 का उद्देश्य सभी व्यक्तियों को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देना है.जो भारत की सामाजिक सद्भावना को दर्शाता है.

हाईकोर्ट ने आरोपी की जमानत याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इस अधिनियम का उद्देश्य भारत में धर्मनिरपेक्षता की भावना को बनाए रखना है. कोर्ट ने कहा कि संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने का अधिकार है वो उसका पालन कर सकता है और संविधान उसका प्रचार करने का अधिकार देता है. लेकिन, यह व्यक्तिगत अधिकार धर्म परिवर्तन कराने के सामूहिक अधिकार में तब्दील नहीं होता. क्योंकि धार्मिक स्वतंत्रता, धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति और धर्मांतरित होने वाले व्यक्ति दोनों को समान रूप से प्राप्त होती है.

हाईकोर्ट ने खारिज की याचिका –

हाईकोर्ट ने ये टिप्पणी याची अजीम को जमानत देने से इनकार करते हुए की. कोर्ट ने याची अजीम पर एक लड़की को जबरन इस्लाम कबूल कराने और उसका यौन शोषण करने का आरोप है. ये आरोप गंभीर है. याची के खिलाफ धारा 323/ 504/506 आईपीसी और धारा 3/5(1) उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 के तहत एफआईआर दर्ज है. इस मामले पर हाईकोर्ट में जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की सिंगल बेंच में हुई सुनवाई. आरोपी याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में अपनी जमानत अर्जी लगाई थी और दावा किया था कि उसे इस मामले में झूठा फंसाया गया है. उसने दावा किया कि सूचना देने वाली लड़की उसके साथ रिश्ते में थी, लड़की स्वेच्छा से अपना घर छोड़कर चली गई थी. लेकिन कोर्ट ने आरोपी पक्ष की इस दलील को स्वीकार नहीं किया. जिसके बाद कोर्ट ने आरोपी अजीम को जमानत याचिका को खारिज कर दिया.

 

 

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