बिगुल बज उठा महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव का आम मतदाता फेक नेरेटिव से बचें

कुमारी रंजना, प्रधान संपादक – मिडिया टाईम्स 

देश के मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने जब महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनावों की तिथियों का ऐलान किया, तो विभिन्न राजनीतिक पार्टियों ने अपनी-अपनी जीत की रणवेरी बजानी शुरू कर दीं। चुनावी मैदान में मुकाबला बढ़ता जा रहा है, और राजनीतिक दलों के बीच वाक युद्ध तेज हो गया है। लेकिन इस चुनावी माहौल में एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी आम मतदाता की है, जो चुनावी फैसले में अपने विवेक का इस्तेमाल करे, न कि गुमराह करने वाले फेक नेरेटिव्स का शिकार बने।

भारत में चुनावी महासंग्राम में भाग लेने वाली दो प्रकार की जनता है—एक बौद्धिक, जो सोच-समझकर देश के विकास और संविधान के संरक्षकों का चुनाव करती है, और दूसरी वो, जो किसी पार्टी के प्रति अंध विश्वास रखकर बिना तथ्यों को समझे वोट करती है। ऐसे में, आम जनता का यह दायित्व है कि वे पार्टियों द्वारा किए गए घोषणाओं और दावों की सत्यता की कसौटी पर जांच करें। बिना मंथन किए की जाने वाली घोषणाएं, जो निजता और समाज के हित को नुकसान पहुंचा सकती हैं, उनसे बचने की आवश्यकता है।

चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने स्पष्ट रूप से कहा कि वे चुनावी फेक नेरेटिव्स को झूठा बताने का काम करेंगे, ताकि आम लोग गुमराह न हों। इसके साथ ही, उन्होंने चेतावनी दी कि यदि कोई पार्टी या व्यक्ति ‘रेड लाइन’ पार करेगा, तो चुनाव आयोग कठोर कदम उठाएगा। यह स्पष्ट संदेश है कि चुनावी मैदान में हर प्रकार के झूठे प्रचार और अफवाहों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

अब, यह जिम्मेदारी मतदाता की है कि वे इन मुद्दों पर अपनी जागरूकता बढ़ाएं और यह तय करें कि उनका एक-एक वोट किसके पक्ष में जाएगा। यह केवल राजनीतिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि देश की दिशा तय करने का सवाल है।

झारखंड में चुनाव दो चरणों में होंगे, 13 और 20 नवंबर को। सुरक्षा कारणों से इस चुनाव को चरणबद्ध तरीके से आयोजित किया जा रहा है। झारखंड में करीब 2.6 करोड़ और महाराष्ट्र में करीब 9.63 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे।

मुख्य चुनाव आयुक्त ने यह भी साफ किया है कि चुनावी प्रचार में फेक नेरेटिव्स को बढ़ावा देने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। उनका कहना था कि चुनावी प्रक्रिया में शुद्धता बनाए रखना और जनता को गलत सूचना से बचाना चुनाव आयोग की प्राथमिकता होगी।

अब यह सवाल उठता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के इस देश में निजता और स्वतंत्र विचारों का सम्मान करते हुए, एक मतदाता को यह कैसे सुनिश्चित करना चाहिए कि वह किसी भी पक्ष के झूठे प्रचार का शिकार न हो? इसके लिए जरूरी है कि मतदाता खुद तथ्यों की जांच करें, और राजनीतिक रुख की बजाय अपने वोट को राष्ट्रहित में करें।

इस चुनावी लड़ाई में हमें यह समझना होगा कि केवल एक समझदार मतदाता ही लोकतंत्र की सशक्तता और उसकी सही दिशा में योगदान कर सकता है।

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