कुमारी रंजना, प्रधान संपादक द मीडिया टाइम्स
महान तबला वादक दिवगंत श्री जाकिर हुसैन से मेरा परिचय बारह वर्ष के उम्र में हुई थी. ख्यातिप्राप्त,तबला वादक श्री गोदइ महाराज, कृष्णा महाराज और सितारा देवी के एक सांस्कृतिक आयोजन में मैं शिरकत करने गई थी फिर तबला वादन के महान दिग्गज्जो के नाम सुने.घर के संगीत मय माहौल ने मुझे संगीत को समझने का अवसर दिया.
वह केवल तबला वादन में ही दक्ष नहीं थे, वह शास्त्रीय संगीत की अन्य विधाओं से भी अच्छी तरह परिचित थे। वह जिस भी काम में रुचि दिखाते, उसमें महारत हासिल कर लेते। वह हमेशा कुछ नया सीखने के लिए तत्पर रहते थे और अपने शिष्यों से कहते थे कि गुरु से जो सीखें, उससे इतर भी कुछ नया करने की कोशिश करें। वह जबरदस्त कलाकार थे।
वह जहां भी जाते, खुद को वहां के माहौल में ढाल लेते। वह विदेश में भी स्टार कलाकार का दर्जा रखते थे। उन्होंने विदेश में भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में जैसी भूमिका निभाई, उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। उनकी सादगी, उनकी संगीत साधना और उनका जीवन भारतीय संस्कृति का परिचायक था। यह उनकी लोकप्रियता का कमाल था कि उन्होंने कई उत्पादों के लिए विज्ञापन भी किए
मुश्किल काम था।
जाकिर हुसैन जितने भारत में लोकप्रिय थे, उतने ही विदेश में भी। पश्चिम में उनकी पहचान एक महान भारतीय संगीतकार के रूप में भी थी। उन्होंने कुछ फिल्मों में संगीत भी दिया। इनमें हिंदी फिल्में भी हैं और हालीवुड फिल्में भी। उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी की फिल्मों में अभिनय भी किया। उनका कहना था कि उन्होंने अभिनय इसलिए किया, क्योंकि कुछ नया सीखना चाहते थे। वह अमेरिका में बस गए थे।
वह वहां युवाओं को तबला वादन सिखाते थे और भारतीय संगीत के बारे में पढ़ाते थे। वह हमेशा कहते थे कि भारत एक प्राचीन देश है और उसके पास दुनिया को देने के लिए बहुत कुछ है। वह यह मानते थे कि देवी सरस्वती की उन पर खास कृपा है। उनका यह किस्सा खूब प्रचलित है कि उनके जन्म के बाद उनके पिता ने किस तरह उनके कान में तबले की थाप सुनाई थी, जबकि रिवाज यह है कि बच्चे के जन्म के बाद उसके कान में अजान सुनाई जाती है।
उनके पिता उस्ताद अल्लारक्खा का कहना था कि हमारी इबादत तो देवी सरस्वती की आराधना है। आम लोग भले ही ज्ञान की देवी सरस्वती की आराधना खास अवसरों पर करते हों, लेकिन हम जैसे शास्त्रीय संगीत के साधक तो हर दिन उनकी आराधना करते हैं और यह मानते हैं कि उनके दिए हुए ज्ञान से ही हम कुछ हासिल कर सके। उनके पिता भी विख्यात तबला वादक थे, लेकिन मुझे यह कहने में संकोच नहीं कि तबला वादन में चार चांद लगाने का काम जाकिर हुसैन ने किया।
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