द मीडिया टाइम्स डेस्क
अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम को भारतीय जांच एजेंसियां पिछले चार दशकों से पकड़ने में नाकाम रही हैं, लेकिन उसकी गैरकानूनी गतिविधियों को रोकने और उसके नेटवर्क को कमजोर करने की कोशिशें लगातार होती रही हैं। इसी प्रयास में सरकार ने साल 2000 से आयकर कानून और **स्मगलर्स एंड फॉरेन एक्सचेंज मैनिपुलेटर्स (सफेमा)** एक्ट के तहत दाऊद की संपत्तियों की नीलामी शुरू की।
पहली नीलामी और दाऊद का खौफ
दिसंबर 2000 में पहली बार दाऊद की संपत्तियों की नीलामी का ऐलान किया गया। लेकिन मुंबई में दाऊद के खौफ के कारण कोई भी बोली लगाने नहीं आया। मीडिया ने इसे इस रूप में पेश किया कि भले ही दाऊद कराची में बैठा हो, लेकिन उसका आतंक अब भी मुंबई पर छाया हुआ है।
दूसरी नीलामी: साहस का प्रदर्शन
कुछ महीनों बाद दूसरी बार नीलामी आयोजित की गई। इस बार दिल्ली के शिवसैनिक और वकील अजय श्रीवास्तव ने हिम्मत दिखाते हुए बोली लगाई और नागपाड़ा इलाके में दाऊद की दो दुकानों को खरीद लिया। श्रीवास्तव ने कहा कि उनका मकसद यह संदेश देना था कि दाऊद जैसे भगोड़े अपराधी से डरने की जरूरत नहीं है।
नीलामी जीतने के बावजूद कब्जा नहीं
हालांकि, नीलामी जीतने के बाद भी 25 साल बीत जाने के बावजूद अजय श्रीवास्तव इन दुकानों पर कब्जा हासिल नहीं कर सके। ये दुकानें दाऊद की बहन **हसीना पारकर** के कब्जे में थीं, जिन्होंने इन्हें खाली करने से साफ इनकार कर दिया।
सरकार की कोशिशें जारी
दाऊद की संपत्तियों की नीलामी का यह सिलसिला अभी भी जारी है। हाल के वर्षों में भी कई बार दाऊद की संपत्तियों को नीलाम किया गया है। हर बार यह सरकार का एक प्रयास होता है कि अंडरवर्ल्ड पर कानूनी शिकंजा कसते हुए उसके नेटवर्क को कमजोर किया जाए।
नतीजा और संदेश
दाऊद की संपत्तियों पर कब्जा हासिल करना अब भी मुश्किल साबित हो रहा है। लेकिन इन नीलामियों ने जनता के बीच यह संदेश जरूर दिया है कि कानून के सामने किसी अपराधी का खौफ नहीं टिक सकता। धीरे-धीरे, दाऊद और उसके गैंग का असर कम होता जा रहा है, और यह सरकार और आम नागरिकों के लिए एक सकारात्मक संकेत है।
दाऊद भले ही आज भी भारत की पहुंच से दूर हो, लेकिन उसकी संपत्तियों पर सरकारी कार्रवाई और जनता का साहस यह दर्शाता है कि आतंक और अपराध के खिलाफ लड़ाई में भारत पीछे हटने वाला नहीं है।
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