मसाई स्कूल के पीएपी मॉडल ने झारखंड के तकनीकी प्रेमियों को दिलाई सफलता

द मीडिया टाइम्स डेस्क 

मसाई स्‍कूल एक ऐसा मंच है, जहाँ कौशल का संयोजन अवसरों से किया जाता है। इस स्‍कूल ने भारत में 5000 से अधिक विद्यार्थियों के सपने पूरे करने में सफलता पाई है। नतीजे देने वाले एक करियर इंस्टिट्यूट के रूप में काम करते हुए, इसने 100 से ज्यादा बैचेस को प्रशिक्षित किया है और बीते वर्षों में अपना दायरा बढ़ाते हुए, अभी 6000 से अधिक एनरोलमेंट्स हासिल कर लिये हैं। इसी महीने यह संस्‍थान अपने पाँच साल पूरे कर रहा है और अपने एकमात्र लक्ष्य की प्राप्ति भी सुनिश्चित कर चुका है। इसका लक्ष्य शिक्षा प्रणाली को नतीजों पर आधारित बनाकर भारत की मानवीय क्षमता को सामने लाना है।

पूजा कुमारी रामगढ़के एक छोटे-से गाँव हार्वे की रहने वाली हैं और उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान काफी चुनौतियों का सामना किया। उनके गाँव का स्‍कूल 8वीं कक्षा तक था और परिवहन के अभाव के कारण उन्हें 4 किलोमीटर पैदल चलकर जाना पड़ता था। पूजा के पिता चाहते थे कि वह अपनी पढ़ाई जारी रखे। उन्होंने पूजा को दादी माँ के पास भेज दिया, जहाँ का स्‍कूल सिर्फ एक साइकिल राइड की दूरी पर था। 12वीं कक्षा में पूजा ने बेहतरीन नतीजे दिये। उनका ध्यान विज्ञान पर था और आईआईटी उनका लक्ष्य था।आईआईटी की तैयारी के दौरान पूजा को अपने भाई के माध्यम से मसाई स्कूल के बारे में पता चला और उन्होंने आईआईटी का पारंपरिक रास्ता चुनने के बजाए मसाई स्कूल को चुना। उन्हें नौकरी के लिये तैयार होना था और व्यावहारिक कौशल हासिल करना था।

मसाई में पूजा ने व्यावहारिक तरीका अपनाते हुए अपनी जानकारियों की कमी को दूर किया। उन्होंने कंप्यूटर की मूलभू‍ल कुशलताओं से लेकर पाइथन में एडवांस्‍ड कोडिंग तक सीखी। उनके शुरुआती डर दूर हो गये, क्‍योंकि वे लगातार प्रश्‍न पूछती रहीं और धीरे-धीरे तकनीकी की जानकार बन गईं। मसाई के साथ 8 महीने बिताने के बाद उन्हें नो ब्रोकर में एसडीई-1 का पद मिल गया। मसाई स्कूल के साथ अपने सफर के बारे में बताते हुए, पूजा ने कहा, ‘‘मैं गाँव में पली-बढ़ी, जहाँ शिक्षा के लिये संसाधन सीमित थे और इसलिये अपने सपनों को पूरा करने में मुझे अनेकों चुनौतियाँ मिलीं। लंबी दूरी की यात्राओं और स्‍थानीय अड़चनों ने मेरे संकल्प को और मजबूत किया। मसाई स्‍कूल ने मेरी जिंदगी बदल दी और मुझे तकनीकी उद्योग के लिये जरूरी कौशल प्रदान किया। एक आम लड़की से लेकर आत्‍मविश्‍वास से भरी टेक प्रोफेशनल बनने तक, मेरा सफर लगन और सही शिक्षा की ताकत दिखाता है।’’

अपर्णा सिंह धनबाद में पली-बढ़ीं और छोटी उम्र में ही अपनी माँ को खो देने के कारण उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उनके पिता को भी मुश्किलें हो रही थीं और तब उनके चाचा और दादाजी ने सहयोग प्रदान किया। आर्थिक तंगी के बावजूद अपने चाचा की सहायता से उनकी मुश्किलें कम हुईं। अपर्णा हिन्‍दी मीडियम स्‍कूल में थीं और अंग्रेजी बोलना उन्हें चुनौतीपूर्ण लगता था। भाषा में अपने कौशल को बेहतर बनाने के लिये उन्होंने अंग्रेजी में ऑनर्स की डिग्री के लिये पढ़ाई की। महामारी से उनकी कॉलेज की पढ़ाई बाधित हुई और उन्होंने ऑनलाइन क्लास ली, जिससे पढ़ाई सीमित हो गई। अंग्रेजी में ऑनर्स की डिग्री पाने के बाद भी रोजगार के कोई बहुत अच्छे मौके उन्हें नहीं मिल सके। फिर सरकारी परीक्षाओं की तैयारी के लिये उनकी कोशिश से अनिश्चितता तथा तनाव और भी बढ़ गया।

अपर्णा को मसाई स्कूल के बारे में पता चला, जो कि कोडिंग का एक इंस्टिट्यूट है और पे-आफ्टर-प्‍लेसमेंट के मॉडल पर काम करता है। शुरूआत में अपर्णा को संकोच हुआ, लेकिन फिर उन्होंने 5-वीक के लुकआउट पीरियड में इसे आजमाने का फैसला किया। बहुत ज्यादा स्क्रीन टाइम और अकेलेपन की शंकाओं के बावजूद अपर्णा ने भरोसा रखकर मसाई के प्रोग्राम से अपनी अनिश्चितताओं को तयशुदा हालात में बदल दिया। कोडिंग में कुशल होकर उन्होंने कपिवा में एसडीई 1 का पद पाया। अपना अनुभव बताते हुए, उन्होंने कहा, ‘‘मसाई स्कूल की खोज मेरे लिये एक महत्वपूर्ण मोड़ था। मैंने भरोसा किया और फिर मेरी अनिश्चितताएँ कौशल तथा आत्‍मविश्‍वास में बदल गईं। मसाई के प्रोग्राम ने मुझे संतोषजनक नौकरी पाने के लिये टूल्‍स दिये और मैंने अपने परिजनों को दिया हुआ वादा पूरा किया। मसाई स्‍कूल ने मुझे वह बनने का मौका दिया, जो मैं आज हूँ और इसके लिये मैं हमेशा मसाई की आभारी रहूँगी।’’

विवेक रंजन बिहार, भारत के एक कृषक परिवार में पले-बढ़े और उनके पास शिक्षा पाने के लिये सीमित संसाधन थे। दसवीं कक्षा तक वह हिन्‍दी माध्‍यम के एक स्‍कूल में पढ़े। बेहतर मौकों की तला…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *