दुनिया बनाने वाले – काहे को दुनिया बनाई

द मीडिया टाइम्स  – मोहित श्रीवास्तव 

डेस्क:  “मैं से लेकर ब्रह्माण्ड” तक में सब कुछ समाया हुआ है। “मैं” से नीचे कुछ नहीं तो “ब्रह्माण्ड” के बाहर कुछ भी नहीं। “अफ्रीका, एशिया, उत्तर अमेरिका, ओसियाना, अंटार्कटिका, दक्षिण अमेरिका, यूरोप” सात महादेश हैं और इन महादेश के अंतर्गत, लगभग, “२०० देश” हैं। देश के भीतर, “राज्य और केंद्र शासित प्रदेश” आता है। फिर आगे, “जिला, पंचायत, कस्बा” इत्यादि का अस्तित्व दिखता है।

अर्मेनिया-अजरबैजान, भारत-पाकिस्तान, रुस-यूक्रेण, ईरान-सऊदी, उत्तर-दक्षिण कोरिया, इजरायल-फिलिस्तीन, अमेरिका-रूस, जापान-चीन, ताईवान-चीन, चीन-अमेरीका, बांग्लादेश-भारत, अफगानिस्तान-पाकिस्तान, अफ्रीकी देश, ईरान-इजरायल, म्यांमार-बांग्लादेश, चीन-तिब्बत ••••• इत्यादि ••••• बहुत देशों के उदाहरण हैं जो अपने-अपने स्वार्थ के लिए आपस में लड़ रहे हैं। कहीं “धर्म की लड़ाई” तो कोई “मुद्रा के लिए लड़” रहा है। “वार्चस्व की लड़ाई” की अपनी वास्तविकता है तो कोई “घमंड में लड़ता” दिख रहा है और कहीं “सनक में युद्ध” किया जा रहा है। “विस्तारवाद के लिए लड़ाई” का भी बहुत उदाहरण है। लगभग, सब लड़ रहे हैं।

अगर “व्यक्तिगत संबंधों” की बात करें तो यह भी लगभग “तार-तार” हो चुका है। “भाई, बहन” का बलात्कार कर रहा है तो “मां-बेटे” में भी संभोग के की उदाहरण हैं। “बाप-बेटी” का संबंध भी हवस का शिकार हो चुका है। बाकी संबंधों की क्या बात की जाए, सब “हवस-संभोग का बलि” चढ़ चुका है।

“रुपया और भूमि”, लोगों के मृत्यु का कारण बन रहा है तो “शिक्षा विभाग”, शिक्षा का अनैतिक बिक्री करता दिख रहा है और “कानून विभाग” के द्वारा कानून की हत्या की जा रही है। “चिकित्सा विभाग”, चिकित्सा का हत्यारा बना हुआ है और “पत्रकारिता विभाग” तो लोकतंत्र को विकलांग बना हीं चुका है। “राजनीति”, अपने और अपनों के राज के लिए नीति बन चुका है तो “रक्षा विभाग” से भी कई उदाहरण देखने को मिलते हैं जो दुश्मनों के साथ मिलकर काम कर रहा है। “सिनेमा क्षेत्र” की बात करें तो वहां भी स्थिति दयनीय है और यह युवा-भटकाव का साधन बन चुका है ••••• इत्यादि।

बाजार में “प्लेब्वॉय और प्लेगर्ल” के नौकरी लिए प्रचार आ रहा है और लोग “संभोग करने की नौकरी” कर रहे हैं। बहुत कुछ हो रहा है, और अगर ऐसे हीं चलता रहा तो, बहुत कुछ होना बाकी है।

“नैतिकता हीं अनैतिक हो चुका है”

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