द मीडिया टाइम्स
मोहित श्रीवास्तव
डेस्क: मोदी, गलत है। मोदी, सही है। पुतिन सही है। पुतिन गलत है। हसीना सही है। हसीना गलत है। चीन सही है। चीन गलत है। ट्रंप सही है। ट्रंप गलत है। दक्षिणपंथी होना चाहिए। दक्षिणपंथी नहीं होना चाहिए। वामपंथ सही है। वामपंथ गलत है। मुस्लिम सही हैं। मुस्लिम गलत हैं। हिन्दू सही हैं। हिन्दू गलत है। इजरायल सही है। इजरायल गलत है। फिलिस्तीन सही है। फिलिस्तीन गलत है। इत्यादि।
यह हो क्या रहा है? पत्रकारिता का स्तर कहां तक जा चुका है? कोई पत्रकारिता, किसी चीज का समर्थन करता दिख रहा है तो उसी चीज का विरोध, किसी और पत्रकारिता के द्वारा किया जा रहा है। क्या, लोकतंत्र का चौथा स्तंभ, आज वास्तव में वही है जिसका उसे कार्य दिया गया था? तो इसका उत्तर है, नहीं।
“विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और पत्रकारिता”, लोकतंत्र के चार स्तंभ हैं। लेकिन अब यह चारों स्तंभ, आपस में एक होकर, “अर्थपालिका(रुपया)” बन चुका है। बाकी की बात तो बाद में कर लेंगे, लेकिन अभी, “पत्रकारिता” की बात करते हुए मैं यह बताना चाहता हूं की, यह पत्रकारिता का दयनीय स्तर है। अधिकांश पत्रकार को, पत्रकारिता से कोई लेना-देना नहीं है और ये लोग सिर्फ अपने “स्वार्थ और अर्थ(मुद्रा)” के लिए पत्रकारिता करते हैं। जिधर से रूपया/इत्यादि मिला उधर का समर्थन करने लगते हैं। हालांकि, यहां पर मैं यह भी बताना चाहुंगा की, पत्रकारिता के इस अंधेरेपन में, अभी भी कुछ पत्रकार हैं जो पत्रकारिता को जीवित रखे हुए हैं।
आज, “सोशल मीडिया” के इस दौर में, लगभग सभी लोग, पत्रकार बने हुए हैं। ना तो विषय का प्रयाप्त जानकारी और ना हीं शब्दों का ज्ञान, फिर भी ज्ञान देने में पीछे नहीं। यह सब, पत्रकारिता में “अनैतिक मिश्रण” का निंदनीय उदाहरण है। अपने देश भारत के साथ-साथ अगर पुरे संसार की बात करें तो लगभग सभी देशों में, पत्रकारिता का यही स्थिति है।
अंत में:- “गणेश शंकर विद्यार्थी”, “माखनलाल चतुर्वेदी” इत्यादि के भारत को आज पत्रकारिता में बहुत बड़े “बदलाव की आवश्यकता” है।