द मीडिया टाइम्स- मोहित श्रीवास्तव
डेस्क: शिक्षा। शिक्षा नीति। नई शिक्षा नीति। भारतीय नई शिक्षा नीति। शिक्षा, जो “ज्ञान और चरित्र निर्माण” के आधार पर परिभाषित होता है, इसके लिए, अपने देश, भारत में एक “नई शिक्षा नीति” आई है। यह शिक्षा नीति, “डॉ. कृष्णास्वामी कस्तुरीरंगन” के अध्यक्षता में, “वर्ष २०२०” में आया।
लेकिन, आगे बढ़ने से पहले, सबसे पहले यह प्रश्न की इस शिक्षा नीति की आवश्यकता क्यूं पड़ी। जब भी, किसी चीज का कुछ नया आता है तो, इसका अर्थ यह हुआ की यह चीज पहले से चल रहा था और उसमें “संसोधन” कर, “कुछ या बहुत” नयापन आया है। भारत में पहले से, और भारत का पहला शिक्षा नीति, “वर्ष १९८६” में आया था। फिर, “वर्ष १९९२” में, इसमें कुछ संसोधन किया गया था। लेकिन, वर्ष २०२० वाले शिक्षा नीति में व्यापक बदलाव है, इसीलिए इसे नई शिक्षा नीति या भारत का “दूसरा शिक्षा नीति” बताया जाता है।
यह शिक्षा नीति, “५+३+३+४ संरचना” में आया है , जिसका उद्देश्य पारंपरिक शिक्षण प्रणाली को बदलना और अनुकूलित करना है ताकि शिक्षार्थियों की उभरती जरूरतों को अच्छे ढंग से पूरा किया जा सके। ५(आधारभूत चरण), ३(प्राथमिक चरण), ३(मध्य चरण), ४(माध्यमिक चरण) – इसके चार चरण हैं। इस प्रणाली का उद्देश्य एक समग्र शैक्षणिक वातावरण बनाना है।
और भी, बहुत सारे बदलाव और नयापन है, इस शिक्षा प्रणाली में। बहुत। लेकिन बात यह है की, भारत को इतने बड़े शिक्षा बदलाव या क्रांति की आवश्यकता क्यूं पड़ी? इस प्रश्न का सीधा सा उत्तर है की, १९४७ के बाद वाले भारत की अभी तक की शिक्षा प्रणाली, सही नहीं था। यह भी सुनिश्चित नहीं किया जा सकता की यह नया शिक्षा नीति, भारत के लिए लाभकारी होगा। भारत, जो आदि-अनादि काल से “विश्वगुरु(शिक्षाभूमि)” रहा, जिसने संसार को सबसे अच्छा शिक्षा प्रणाली “गुरुकुल” दिया इत्यादि – वो भारत, अब शिक्षा के दयनीय स्थिति में आ चुका है। अपने देश की भाषा, “हिन्दी, संस्कृत, तमिल” इत्यादि के स्थान पर विदेशी भाषा “अंग्रेजी, फ्रेंच” इत्यादि को महत्व देना, भारत के लोगों के “शैक्षणिक दिवालियापन” को दर्शाता है। शिक्षा, नौकरी के लिए और नौकरी मिलने पर शिक्षा को त्याग देना, भारत के लोगों के शैक्षणिक दिवालियापन का एक और उदाहरण है। शिक्षा के लिए, दुसरे देश में जाने की प्रवृत्ति भी भारतीय शिक्षा का बर्बाद कर रहा है। और भी बहुत कुछ है, जो “विश्वगुरु को विश्वविद्यार्थी” बना रहा है।
सरकारें आएंगी, सरकारें जाएंगी। शिक्षा नीति आएगा, शिक्षा नीति बदलेगा, शिक्षा नीति जाएगा। लेकिन
शिक्षा रहना चाहिए। हां, शिक्षा रहना चाहिए।
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