द मिडिया टाईम्स डेस्क
SC:सुप्रीम कोर्ट ने असम में नागरिकता के लिए 25 मार्च, 1971 की समय सीमा तय करने के फैसले को सही ठहराया है। असम में अवैध प्रवासियों की पहचान और नागरिकता के मुद्दे पर यह एक महत्वपूर्ण निर्णय है। फैसले के तहत अब नागरिकता अधिनियम की धारा 6A लागू रहेगी।
इस फैसले से असम में अवैध प्रवासियों की पहचान और नागरिकता के मुद्दे पर लंबे समय से चली आ रही बहस का अंत हो गया है। यह फैसला 1985 के असम समझौते को ध्यान में रखते हुए सुनाया गया है। यह समझौता बांग्लादेश से असम में अवैध घुसपैठ के खिलाफ छह साल तक चले छात्र आंदोलन के बाद हुआ था। हालांकि, चार जजों की बेंच ने एक जज के असहमति जताने के बावजूद यह फैसला सुनाया है। आइए जानते हैं इस मुद्दे पर कुछ बड़ी बातें
मामले में याचिकाकर्ताओं जिनमें असम पब्लिक वर्क्स और असम संमिलिता महसंघ शामिल हैं ने तर्क दिया कि धारा 6A भेदभावपूर्ण थी क्योंकि यह असम में प्रवेश करने वाले आप्रवासियों के लिए नागरिकता के लिए एक अलग कट-ऑफ तिथि प्रदान करती थी। इसे असम में कट-ऑफ को 1951 में वापस लाने के लिए कुछ वर्गों की तरफ से भी जोर था। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि धारा 6A ने राज्य में जनसांख्यिकीय परिवर्तन किया है, जिससे वहां रह रहे लोगों के अधिकारों और संस्कृति को खतरा
सुप्रीम कोर्ट के फैसले में क्या है?
जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस मनोज मिश्रा की तीन जजों की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि असम में प्रवासियों की स्थिति देश के बाकी हिस्सों की तुलना में अलग है। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को विशेष रूप से संबोधित करने के लिए एक कानून बनाना संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं होगा। CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने अपनी अलग लेकिन सहमत राय में कहा कि असम में प्रवास के मुद्दे की भयावहता को देखते हुए धारा 6A का उपयोग उचित था, भले ही भारत के अन्य राज्यों की बांग्लादेश के साथ बड़ी सीमाएं हों और कुछ मामलों में, प्रवासियों की अधिक आमद देखी गई हो। इसके अलावा, CJI चंद्रचूड़ ने 25 मार्च, 1971 की समय सीमा को उचित पाया क्योंकि उस दिन पाकिस्तानी सेना ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली राष्ट्रवादी आंदोलन को कुचलने के लिए ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू किया था।
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