द मीडिया टाइम्स डेस्क
खरी-अखरी सवाल उठाते हैं, पालकी नहीं – नासिर खान
कांगो जैसे देशों की कतार में खड़े भारत में शहंशाह, वाइसराय को मात देती जिल्ले इलाही और राजनेताओं की विलासिता दिल्ली विधानसभा चुनाव की घोषणा होते ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और आम आदमी पार्टी (आप) के बीच जबानी और पोस्टर युद्ध शुरू हो चुका है। भाजपा, मुख्यमंत्री के किसी स्थानीय चेहरे के अभाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे के सहारे चुनावी नैया पार करने की कोशिश में है। वहीं, आप एक बार फिर अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में अपनी सत्ता बचाने के लिए प्रयासरत है।
प्रधानमंत्री मोदी ने अरविंद केजरीवाल के सरकारी निवास को ‘शीशमहल’ का नाम देते हुए इसे चुनावी मुद्दा बनाया। इसके जवाब में आप ने प्रधानमंत्री आवास को ‘राजमहल’ करार दिया। दोनों तरफ से किए जा रहे ये आरोप-प्रत्यारोप जनता के सामने बड़ी सच्चाई उजागर करते हैं।
शीशमहल बनाम राजमहल: कौन सही?
प्रधानमंत्री मोदी ने केजरीवाल पर उनके सरकारी आवास पर 45 करोड़ रुपये से अधिक खर्च करने का आरोप लगाया। इसमें लाखों के परदे, करोड़ों के फर्नीचर और महंगे उपकरण शामिल हैं। वहीं, आप ने पलटवार करते हुए पीएम मोदी के 89 करोड़ रुपये के आवास मरम्मत और 8,400 करोड़ के हवाई जहाज का जिक्र किया।
यह विवाद दिखाता है कि दोनों नेता, जो सादगी का चोला पहनते हैं, सत्ता में आते ही विलासिता की सीमाएं पार कर देते हैं। सवाल उठता है कि जब देश आर्थिक तंगी से जूझ रहा है, करोड़ों लोग गरीबी और भुखमरी के शिकार हैं, तो नेताओं की ऐसी फिजूलखर्ची क्या वाजिब है?
चुनावी जंग: मोदी बनाम केजरीवाल
दिल्ली का यह चुनाव केवल दो दलों की लड़ाई नहीं, बल्कि दो विचारधाराओं का संघर्ष है। अगर आम आदमी पार्टी यह चुनाव हारती है, तो केजरीवाल की राष्ट्रीय राजनीति में जगह कमजोर हो जाएगी। वहीं, भाजपा की जीत न केवल दिल्ली की सत्ता में वापसी होगी, बल्कि मोदी की राष्ट्रीय राजनीति में पकड़ और मजबूत होगी।
राजनीति या साजिश?
दिल्ली चुनाव की घोषणा के समय मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में 38 मिनट सफाई दी और महज 40 सेकंड में तारीख का ऐलान कर दिया। यह प्रक्रिया सवाल खड़े करती है। राजीव कुमार 18 फरवरी को रिटायर हो रहे हैं और दिल्ली का चुनाव परिणाम 8 फरवरी को आना है। इस बीच 14 दिनों में सरकार बनाने के लिए सत्ता पक्ष द्वारा साजिशें रचे जाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
क्या यह सब एक सुनियोजित प्रयास है, ताकि राजीव कुमार अपने रिटायरमेंट से पहले दिल्ली की सत्ता भाजपा को सौंप सकें? यह सवाल सिर्फ केजरीवाल ही नहीं, बल्कि पूरे लोकतंत्र के लिए अहम है।
अंतिम सवाल
दिल्ली का यह चुनाव न केवल आम आदमी पार्टी और भाजपा के लिए, बल्कि देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था और चुनाव आयोग की निष्पक्षता के लिए भी अग्निपरीक्षा है। क्या राजीव कुमार दिल्ली का भविष्य लोकतांत्रिक तरीके से तय करेंगे, या यह चुनाव सत्ता के इशारों पर होगा?
यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या दिल्ली की जनता इन राजनीतिक चालों को समझ पाती है और सही फैसला लेती है।