बिहार में एक शराब माफिया विकसित हो गया है, जो एक ओर जहां पड़ोसी राज्यों से तस्करी करके शराब ला रहा है और दूसरी ओर गुपचुप रूप से राज्य में ही शराब बना रहा है। अवैध तरीके से बनाई जाने वाली शराब अक्सर जहरीली शराब में तब्दील हो जाती है, क्योंकि उसे बनाने वाले उसकी गुणवत्ता की परवाह नहीं करते। उनका पूरा ध्यान जैसे-तैसे शराब बनाकर अधिक से अधिक मुनाफा कमाना होता है।
यह पहली बार नहीं है जब जहरीली शराब ने बिहार में कहर ढाया हो। सारण में जहरीली शराब ने कहरा ढाया था। तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि जो शराब पिएगा वह मरेगा। राज्य सरकार ने मरे लोगों के स्वजनों को मुआवजा देने से भी इन्कार किया थाl
शराबबंदी की अपनी नीति पर विचार करेगी, लेकिन उसे इस पर तो ध्यान देना ही होगा कि आखिर यह नीति कितनी कारगर साबित हो रही है? नीतीश सरकार अपनी शराबबंदी की नीति को लेकर कुछ भी दावा करे, उस पर सवाल उठते ही रहते हैं। स्वयं सुप्रीम कोर्ट यह पूछ चुका है कि क्या उसके पास ऐसा कोई आंकड़ा है, जिससे यह पता चल सके कि शराब की खपत में कितनी कमी आई है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि शराब स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और हर सरकार का यह दायित्व है कि वह शराब के चलन को कम करने के उपाय करे, लेकिन क्या यह उपाय पूर्ण शराबबंदी हो सकता है? यह वह प्रश्न है जिस पर नीर-क्षीर ढंग से विचार किया जाना चाहिए,।