ऐसी उम्मीद की जा रही है कि अगले वर्ष जनवरी में जब राम मंदिर को श्रद्धालुओं के लिए खोला जाएगा तो विशाल जनसमूह उमरेगा। श्रद्धालु राम मंदिर दर्शन के उपरांत आस्था केंद्रों की ओर जाएंगे इस लिहाज से सबसे ज्यादा जोड़ गुप्तार घाट के सौंदर्य करण पर है।
निर्माणाधीन राम मंदिर से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित सरयू के बारे में यह मान्यता है कि भगवान राम ने अपने लीला समाप्ति के बाद वहीं से बैकुंठ धाम या दिव्य धाम को प्रस्थान किए थे। तभी से इस घाट को गुप्तार घाट कहा जाने लगा है।
अभी तक जब भी सरयू में बाढ़ आती है इनके वजूद के लिए संकट पैदा कर देती है। श्रद्धालुओं को यहां तक पहुंचाने हेतु अयोध्या से 13 14 किलोमीटर की दूरी तय करने पड़ते हैं। लेकिन अब अयोध्या बिलहरी घाट से होकर इस स्थल तक चौड़ी सड़क का निर्माण और समाधि परिसर का सुदृढ़ीकरण किया जा रहा है।
अयोध्या महात्म्य अयोध्या दर्पण के अनुसार अंतिम संस्कार स्थल के रूप में उस चुनाव के पीछे भारत की इच्छा थी कि यह संस्कार अयोध्या के आग्नेय कोण पर सरयू समीप स्थित ऐसी भूमि पर किया जाना चाहिए जहां पहले किसी का अंतिम संस्कार ना हुआ हो।
इस घाट की तरह ही महाराज दशरथ के अंतिम संस्कार स्थल का भी जिसे समाधि स्थल कहते हैं सौंदर्य करण कर बड़े धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है। वहां तक लोगों की पहुंच को सुगम बनाने के लिए बड़ी सड़क बनाई जा रहीl
19वीं सदी तक यह घाट खास जीर्ण शीर्ण हो चला था तो राजा दर्शन सिंह ने इसका नव निर्माण कराया था बाद में उसके पास ही मिलिट्री मंदिर का निर्माण कंपनी गार्डन और राजकीय उद्यान विकसित होने से इस धर्म स्थल का स्वरूप पर्यटन स्थल के रूप में बदल गया है।
अब नवीनीकरण प्रयासों के तहत सरयू घाट को अयोध्या के दूसरे वैभवशाली घाटों से जोड़ा जा रहा है। श्रद्धालु पर्यटक और तीर्थयात्री जल्दी ही गुप्तार घाट से नया घाट तक लग्जरी क्रूज सेवा से सरयू
की भी सैर कर सकेंगे। वाराणसी की तर्ज पर इस शहर में वह 8 किलोमीटर की दूरी डेढ़ घंटे में तय करेंगे। सरयू नदी वर्तमान में इस घाट पर कई छोटे-छोटे मंदिर हैं जिनमें राम जानकी मंदिर चरण पादुका मंदिर नरसिंह मंदिर हनुमान मंदिर प्रमुख है। भगवान राम इन मंदिरों में राजा के रूप में विराजमान हैं।
गुप्तार घाट से नया घाट तक नया तटबंध बनाकर उस पर 6 मीटर चौड़ी सड़क भी बनाई जा रही है। साड़ी ऋतु में प्रकृति की अठखेलियां इस घाट और उसके मंदिरों के वातावरण को मोहक बनाती रहती है मान्यता है कि भगवान राम स्वर्गारोहण के लिए इस घाट पर आए और दिव्य धाम की ओर प्रस्थान किए। बाग में उनके पुत्र कुश ने जीर्ण हुए इस घाट को फिर से आवाज किया हालांकि महाराजा विक्रमादित्य को भी इसका श्रेय दिया जाता है।